Powered by Blogger.
RSS

ज्योतिष रोग और उपाय

ज्योतिष रोग और उपाय

हर बीमारी का समबन्ध किसी न किसी ग्रह से है जो आपकी कुंडली में या तो कमजोर है या फिर दुसरे ग्रहों से बुरी तरह प्रभावित है | यहाँ सभी बीमारियों का जिक्र नहीं करूंगा केवल सामान्य रोग जो आजकल बहुत से लोगों को हैं उन्ही का जिक्र संक्षेप में करने की कोशिश करता हूँ | यदि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है तो आज धनवान कोई नहीं है | हर व्यक्ति की कोई न कोई कमजोरी होती है जहाँ आकर व्यक्ति बीमार हो जाता है | हर व्यक्ति के शरीर की संरचना अलग होती है | किसे कब क्या कष्ट होगा यह तो डाक्टर भी नहीं बता सकता परन्तु ज्योतिष इसकी पूर्वसूचना दे देता है कि आप किस रोग से पीड़ित होंगे या क्या व्याधि आपको शीघ्र प्रभावित करेगी |

सूर्य से रोग

सूर्य ग्रहों का राजा है इसलिए यदि सूर्य आपका बलवान है तो बीमारियाँ कुछ भी हों आप कभी परवाह नहीं करेंगे | क्योंकि आपकी आत्मा बलवान होगी | आप शरीर की मामूली व्याधियों की परवाह नहीं करेंगे | परन्तु सूर्य अच्छा नहीं है तो सबसे पहले आपके बाल झड़ेंगे | सर में दर्द अक्सर होगा और आपको पेन किलर का सहारा लेना ही पड़ेगा |

चन्द्र से मानसिक रोग

चन्द्र संवेदनशील लोगों का अधिष्ठाता ग्रह है | यदि चन्द्र दुर्बल हुआ तो मन कमजोर होगा और आप भावुक अधिक होंगे | कठोरता से आप तुरंत प्रभावित हो जायेंगे और सहनशक्ति कम होगी | इसके बाद सर्दी जुकाम और खांसी कफ जैसी व्याधियों से शीग्र प्रभावित हो जायेंगे | सलाह है कि संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में न आयें क्योंकि आपको भी संक्रमित होते देर नहीं लगेगी | चन्द्र अधिक कमजोर होने से नजला से पीड़ित होंगे | चन्द्र की वजह से नर्वस सिस्टम भी प्रभावित होता है |

सुस्त व्यक्ति और मंगल

मंगल रक्त का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु जिनका मंगल कमजोर होता है रक्त की बीमारियों के अतिरिक्त जोश की .कमी होगी | ऐसे व्यक्ति हर काम को धीरे धीरे करेंगे | आपने देखा होगा कुछ लोग हमेशा सुस्त दिखाई देते हैं और हर काम को भी उस ऊर्जा से नहीं कर पाते | अधिक खराब मंगल से चोट चपेट और एक्सीडेंट आदि का खतरा रहता है |

बुध से दमा और अन्य रोग

बुध व्यक्ति को चालाक और धूर्त बनाता है | आज यदि आप चालाक नहीं हैं तो दुसरे लोग आपका हर दिन फायदा उठाएंगे | भोले भाले लोगों का बुध अवश्य कमजोर होता है | अधिक खराब बुध से व्यक्ति को चमड़ी के रोग अधिक होते हैं | साँस की बीमारियाँ बुध के दूषित होने से होती हैं | बेहद खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है | व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण और गूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है |

मोटापा और ब्रहस्पति

गुरु यानी ब्रहस्पति व्यक्ति को बुद्धिमान बनता है परन्तु पढ़े लिखे लोग यदि मूर्खों जैसा व्यवहार करें तो समझ लीजिये कि व्यक्ति का गुरु कुंडली में खराब है | गुरु सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करता है और व्यक्ति जडमति हो जाता है | इसके अतिरिक्त गुरु कमजोर होने से पीलिया या पेट के अन्य रोग होते हैं | गुरु यदि दुष्ट ग्रहों से प्रभावित होकर लग्न को प्रभावित करता है तो मोटापा देता है | अधिकतर लोग जो शरीर से काफी मोटे होते हैं उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति कुछ ऐसी ही होती है |

शुक्र और शुगर

शुक्र मनोरंजन का कारक ग्रह है | शुक्र स्त्री, यौन सुख, वीर्य और हर प्रकार के सुख और सुन्दरता का कारक ग्रह है | यदि शुक्र की स्थिति अशुभ हो तो जातक के जीवन से मनोरंजन को समाप्त कर देता है | नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि का कारण अधिकतर शुक्र ही होता है | मंगल की दृष्टि या प्रभाव निर्बल शुक्र पर हो तो जातक को ब्लड शुगर हो जाती है | इसके अतिरिक्त शुक्र के अशुभ होने से व्यक्ति के शरीर को बेडोल बना देता है | बहुत अधिक पतला शरीर या ठिगना कद शुक्र की अशुभ स्थिति के कारण होता है |

लम्बे रोग और शनि

शनि दर्द या दुःख का प्रतिनिधित्व करता है | जितने प्रकार की शारीरिक व्याधियां हैं उनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को जो दुःख और कष्ट प्राप्त होता है उसका कारण शनि होता है | शनि का प्रभाव दुसरे ग्रहों पर हो तो शनि उसी ग्रह से सम्बन्धित रोग देता है | शनि की दृष्टि सूर्य पर हो तो जातक कुछ भी कर ले सर दर्द कभी पीछा नहीं छोड़ता | चन्द्र पर हो तो जातक को नजला होता है | मंगल पर हो तो रक्त में न्यूनता या ब्लड प्रेशर, बुध पर हो तो नपुंसकता, गुरु पर हो तो मोटापा, शुक्र पर हो तो वीर्य के रोग या प्रजनन क्षमता को कमजोर करता है और राहू पर शनि के प्रभाव से जातक को उच्च और निम्न रक्तचाप दोनों से पीड़ित रखता है | केतु पर शनि के प्रभाव से जातक को गम्भीर रोग होते हैं परन्तु कभी रोग का पता नहीं चलता और एक उम्र निकल जाती है पर बीमारियों से जातक जूझता रहता है | दवाई असर नहीं करती और अधिक विकट स्थिति में लाइलाज रोग शनि ही देता है |

ब्लड प्रेशर और राहू

राहू एक रहस्यमय ग्रह है | इसलिए राहू से जातक को जो रोग होंगे वह भी रहस्यमय ही होते हैं | एक के बाद दूसरी तकलीफ राहू से ही होती है | राहू अशुभ हो तो जातक की दवाई चलती रहती है और डाक्टर के पास आना जाना लगा रहता है | किसी दवाई से रिएक्शन या एलर्जी राहू से ही होती है | यदि डाक्टर पूरी उम्र के लिए दवाई निर्धारित कर दे तो वह राहू के अशुभ प्रभाव से ही होती है | वहम यदि एक बीमारी है तो यह राहू देता है | डर के मारे हार्ट अटैक राहू से ही होता है | अचानक हृदय गति रुक जाना या स्ट्रोक राहू से ही होता है |

प्रेत बाधा और केतु

केतु का संसार अलग है | यह जीवन और मृत्यु से परे है | जातक को यदि केतु से कुछ होना है तो उसका पता देर से चलता है यानी केतु से होने वाली बीमारी का पता चलना मुश्किल हो जाता है | केतु थोडा सा खराब हो तो फोड़े फुंसियाँ देता है और यदि थोडा और खराब हो तो घाव जो देर तक न भरे वह केतु की वजह से ही होता है | केतु मनोविज्ञान से सम्बन्ध रखता है | ओपरी कसर या भूत प्रेत बाधा केतु के कारण ही होती है | असफल इलाज के बाद दुबारा इलाज केतु के कारण होता है }

निष्कर्ष

ज्योतिष और रोग इस सम्बन्ध में गम्भीरता से विचार करके अधिक से अधिक कुंडलियों का अध्ययन करने के पश्चात् एक किताब लिखी जा सकती है | ज्योतिष के जानकारों को इस पर काम करना चाहिए | मैं तो प्रयास कर ही रहा हूँ परन्तु पाठकों से अपेक्षा है कि यदि किसी शारीरिक व्याधि के पीछे आप भी ग्रहों को उत्तरदायी मानते हैं तो अवश्य अपने विचार प्रकट करें |
जय श्री राम

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

विवाह का समय और ज्योतिष

हर कोई यह जानना चाहता है कि, उस की शादी कब होगी। ज्योतिष के माध्यम से विवाह का समय निकालने के लिए लोग ज्योतिषी से परामर्श करते हैं ।  विवाह दो लोगों को एक साथ लाता है, जो अपना जीवन एक साथ बिताने का फैसला लेते हैं। ऐसा कहा गया है कि, जोड़ी स्वर्ग में बनती है, इसलिए जब भी विवाह का समय आता है, तब यह एक चिंता का कारण बनता है। हालांकि वैदिक ज्योतिष की मदद से हम इस समय का पता लगा सकते हैं, कि यह समय किसी के जीवन में कब आएगा।
नीचे कुछ कारक हैं, जिस से एक व्यक्ति ज्योतिष की मदद  से विवाह का समय का पता लगा सकता है।
लड़कियों के मामले में 90% ध्यान हम बृहस्पति और उसके प्रभावों को देते हैं, जैसा की यह उनके पति को दर्शाता है। शुक्र का अध्ययन भी करना होता है, क्योंकि यह शादी का कारक है, और यह पुरुषों के शादी को दर्शाता है। शनि ग्रह का भी अध्ययन जरूरी होता है, जो कि शादी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसके अलावा राहु और केतु का भी, जो शादी में देरी ला सकते है। सामान्य नियम के मुताबिक शादी की गणना 7 वें घर  के  मालिक, 7 वें घर में स्थित ग्रहों और निम्नलिखित कारकों को विचार रखकर किया जा सकता है।

 विवाह के समय के लिए कुछ महत्वपूर्ण कंडीशन इस प्रकार हैं-

  1. विवाह 7 वें घर  के  मालिक की दशा अवधि के दौरान या ग्रहों जो 7 वें घर  में स्थित है, के दौरान हो सकता है।
2. शादी की उम्र के दौरान जो के  24 – 28 साल  के करीब ले, महत्व 7 वें घर  के  मालिक और 7 वें घर में स्थित ग्रहों  को दिया जाना चाइये  ।
3. जब 7 वां घर कुछ ग्रह द्वारा  दृष्टिकोण  है, तो उस ग्रह की महादशा वांछित पुरस्कार दे सकता है।
4. जब उस ग्रह की महादशा या अंतर्दशा  हो  जो 7 वें घर को दृष्टि दे रहे हो |
5.   2रे और 4थे घर की अंतर्दशा या महादशा।
6. बृहस्पति गोचर  में 7वें घर, 5वें घर और लग्न को दृष्टि दे रहा हो तो प्रेम विवाह के  चांस अधिक होते है ।
शादी के समय को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में से 7वें घर की राशि है। उदाहरण के तौर पर अगर  राशि बुध के अंतर्गत आता है, तो यह शादी,   22 वें वर्ष से पहले होने की संभावना है।  अगर राशि शनि ग्रह के अंतर्गत आता है, तो यह शादी जन्म के 30 वें वर्ष के बाद भी शादी  हो सकती है।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

जानिए आपकी जन्म कुंडली में विदेश यात्रा योग

जानिए आपकी जन्म कुंडली में विदेश यात्रा योग 

एक समय ऐसा था जब घर से दूर रहकर काम करने को अच्छा नहीं समझा जाता था विदेशों में काम करने या रहने को घर से दूर होने के कारण एक समस्या या दुःख के रूप में देखा जाता था परन्तु वर्तमान समय में विदेश यात्रा या विदेश-वास को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण पूर्णतया बदल गया है आज-कल विदेश-यात्रा और विदेशों में काम करने को एक सुअवसर के रूप में देखा जाता है अधिकांश लोग विदेशों से जुड़कर कार्य करना चाहते हैं तो कुछ विदेश यात्रा को केवल आनंद या एक नये अनुभव के लिए करना चाहते हैं। हममें से अधिकांश की इच्छा होती है कि कम से कम एक बार तो विदेश यात्रा कर ही लें। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जातक जन्मकुंडली में कई योग संयोग देखकर पता लगाया जा सकता है कि उसके जीवन में विदेश यात्रा का अवसर है या नहीं। 
ज्योतिष के अनुसार जन्मकुंडली से अध्ययन से बताया जा सकता है कि किसी जातक की कुंडली में विदेश यात्रा का योग है या नहीं। जन्म कुंडली में बहुत से शुभ-अशुभ योगों के साथ विदेश यात्रा के योग भी मौजूद होते हैं। पंडित विनोद के अनुसार जन्मकुंडली से अध्ययन से बताया जा सकता है कि किसी जातक की कुंडली में विदेश यात्रा का योग है या नहीं। किसी भी कुंडली के अष्टम भाव, नवम, सप्तम, बारहवां भाव विदेश यात्रा से संबंधित होते हैं जिनके आधार पर पता लगाया जा सकता है कि कब विदेश यात्रा का योग बन रहा है।
इसी तरह से जन्मकुंडली के तृतीय भाव से भी जीवन में होने वाली यात्राओं के बारे में बताया जा सकता है। कुंडली में अष्टम भाव समुद्री यात्रा का प्रतीक होता है और सप्तम तथा नवम भाव लंबी विदेश यात्राओं या विदेशों में व्यापार, व्यवसाय एवं दीर्घ प्रवास बताते हैं। जातक यदि विदेश में अपना कोई कार्य करने की योजना बना रहा है तो इस अध्ययन के आधार पर परिणाम का आकलन किया जा सकता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण में देखें तो हमारी कुंडली में बने कुछ विशेष ग्रह-योग ही हमारे जीवन में विदेश से जुड़कर काम करने या विदेश यात्रा का योग बनाते हैं —
“हमारी जन्मकुंडली में बारहवे भाव का सम्बन्ध विदेश और विदेश यात्रा से जोड़ा गया है इसलिए दुःख भाव होने पर भी आज के समय में कुंडली के बारहवे भाव को एक सुअवसर के रूप में देखा जाता है।जन्म कुंडली में सूर्य लग्न में स्थित हो तब व्यक्ति विदेश यात्रा करने की संभावना रखता है। कुंडली में शनि बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं। वहीं कुंडली में बुध आठवें भाव में स्थित हो या कुंडली में बृहस्पति चतुर्थ, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है तब भी विदेश यात्रा के योग होते है। इसी तरह कुंडली में चंद्रमा ग्यारहवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं। वहीं शुक्र जन्म कुंडली के छठे, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो या राहु कुंडली के पहले, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो, तब विदेश जाने का सुख मिलता है।
पारंपरिक भारतीय ज्योतिष के अनुसार तीसरे भाव और बारहवें के अधिपति की दशा या अंतरदशा में जातक छोटी यात्राएं करता है। वहीं नौंवे और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा में लंबी यात्राओं के योग बनते हैं। 
छोटी और लंबी यात्रा का पैमाना सापेक्ष है। छोटी यात्रा कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक की हो सकती है तो लंबी यात्रा कुछ महीनों से सालों तक की। इसी के साथ छोटी यात्रा जन्म या पैतृक निवास से कम दूरी के स्थानों के लिए हो सकती है तो लंबी यात्राएं घर से बहुत अधिक दूरी की यात्राएं भी मानी जा सकती हैं। 
किसी जन्म कुंडली के लग्न विशेष में तीसरे भाव के अधिपति और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा आने पर जातक को घर से बाहर निकलना पड़ता है। जब तक यह दशा रहती है, जातक घर से दूर रहता है। अधिकतर मामलों में दशा बीत जाने के बाद जातक फिर से घर लौट आता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में लग्न और बारहवें भाव के अधिपतियों का अंतर्सबंध होता है वे न केवल घर से दूर जाकर सफल होते हैं, बल्कि परदेस में ही बस भी जाते हैं। 
इसके अलावा लग्नेश और नवमेश दोनो में आपस में राशि परिवर्तन होने पर भी विदेश यात्रा होती है। लग्नेश और चंद्र राशि दोनो ही चर राशियों में स्थित हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है। चन्द्रमाँ को विदेश-यात्रा का नैसर्गिक कारक माना गया है। कुंडली का दशम भाव हमारी आजीविका को दिखाता है तथा शनि आजीविका का नैसर्गिक कारक होता है अतः विदेश-यात्रा के लिये कुंडली का बारहवां भाव, चन्द्रमाँ, दशम भाव और शनि का विशेष महत्व होता है” |||

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को बनाते हैं एक सफल उद्यमी

कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को बनाते हैं एक सफल उद्यमी

आज हर व्यक्ति चाहता है कि उसका अपना कोई व्यवसाय हो। बेशक वह छोटा हो किन्तु अपने किसी व्यवसाय की बात ही निराली होती है। कई बार हम बहुत चुनौतियों का सामना करते हुए कोई अपना काम शुरू भी कर देते हैं लेकिन वहां हम सफल होंगे या असफल यह कोई नहीं जानता है। किन्तु व्यक्ति की जन्म कुंडली को देखकर यह बताया जा सकता है कि क्या आप अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हो? या वह उत्तम समय कब आयेगा जब आप अपना कोई काम प्रारंभ कर सकते हैं?
जन्म कुंडली में कर्म (कार्य) का स्थान दसवां घर होता है। अगर किसी व्यक्ति का कर्म स्थान अच्छा है तो  उस व्यक्ति का व्यवसाय अच्छा चलने की संभावना ज्यादा रहती हैं।
आइये एक नजर डालते हैं कुंडली के उन योगों पर जो व्यक्ति के व्यवसाय को सफल बनाने में मदद करते हैं 

  • अगर कुंडली के कर्म स्थान में ब्रहस्पति बैठा हो (जो भाग्य का मालिक होता है) तो यह केंद्रादित्य योग बनता है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह योग होता है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अन्य जातकों की तुलना में अच्छा चलता है।

  • अगर कर्म स्थान पर बुध या सूर्य की दृष्टी हो या इन ग्रहों में से कोई ग्रह कर्म के स्थान (दसवें भाव) में विराजमान हो तो यह लक्ष्मी नारायण योग बनता है। इस प्रकार के जातकों को व्यवसाय में लाभ प्राप्त होने के अवसर ज्यादा प्राप्त होते हैं।


  • जातक की जन्म कुंडली में अगर मंगल उच्च का होकर कर्म भाव में विराजमान है तो ऐसे व्यक्ति को व्यवसाय और विदेश यात्रा के अच्छे संयोग बन जाते हैं।

  • कुंडली के केंद्र में अगर कहीं भी गुरू और सूर्य या चंद्रमा और गुरु की युक्ति (मेल-मिलाप) बन रहा हो तो इस योग का सीधा प्रवाह कर्म को जाता है। शास्त्रों में इसे वर्गोतम योग बोला जाता है। इस योग में व्यक्ति को सभी प्रकार की सुख-सुविधायें प्राप्त होती हैं।


  • सप्तम दृष्टी सभी ग्रहों की होती है। ब्रहस्पति, सूर्य या मंगल इन शुभ ग्रहों में से किसी की भी दृष्टी अगर दसवें घर पर हो तब भी कर्म भाव में अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता रहता है।

  • राहू भी अगर कर्मभाव की तरफ देखता है या कर्म भाव में उच्च का होकर विराजमान हो तो यह भी योग व्यवसाय के लिए अच्छा माना जाता है। बेशक शनि, राहू और केतु अशुभ ग्रह माने जाते हैं किन्तु कई बार योग के कारण यह ग्रह अच्छे फल प्रदान कर देते हैं।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

कुंडली में विवाह योग

कुंडली में विवाह योग

विवाह यानि गृहस्थ जीवन की एक नई शुरुआत। विवाहोपरांत व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति न रहकर परिवार हो जाता है एवं सामाजिक रुप से जिम्मेदार भी। समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। यह जीवन का एक ऐसा मोड़ होता है जिसके अभाव में व्यक्ति अधूरा रहता है। लेकिन विवाह हर व्यक्ति की किस्मत में नहीं होता। अलग-अलग समाजों में विवाह को लेकर अलग-अलग तरह की प्रथाएं और रिवाज हैं। भारतीय समाज में पारंपरिक विवाह बड़े पैमाने पर होते हैं लेकिन वर्तमान समय में प्रेम विवाह का चलन भी बढ़ा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जातक की कुंडली में मौजूद ग्रहों की दशा से व्यक्ति के विवाह को लेकर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। सिर्फ पूर्वानुमान ही नहीं बल्कि यह भी कि व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सफल रहेगा या नहीं यह भी। तो आइये जानते हैं कि ऐसे कौनसे ग्रह हैं जो किसी जातक की कुंडली विवाह के योग को दर्शाते हैं।


कौनसे ग्रह हैं कुंडली में विवाह योग के कारक


कुंडली में विवाह योग के कारक ग्रहों के बारे में एस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि जब बृहस्पति पंचम पर दृष्टि डालता है तो यह जातक की कुंडली में विवाह का एक प्रबल योग बनाता है। बृहस्पति का भाग्य स्थान या फिर लग्न में बैठना और महादशा में बृहस्पति होना भी विवाह का कारक है। यदि वर्ष कुंडली में बृहस्पति पंचमेश होकर एकादश स्थान में बैठता है तब उस साल जातक का विवाह होने की बहुत ज्यादा संभावनाएं बनती हैं। विवाह के कारक ग्रहों में बृहस्पति के साथ शुक्र, चंद्रमा एवं बुद्ध भी योगकारी माने जाते हैं। जब इन ग्रहों की दृष्टि भी पंचम पर पड़ रही हो तो वह समय भी विवाह की परिस्थितियां बनाता है। इतना ही नहीं यदि पंचमेश या सप्तमेश का एक साथ दशाओं में चलना भी विवाह के लिये सहायक होता है।

कौनसे ग्रह हैं कुंडली में विवाह योग के बाधक

बृहस्पति की दृष्टि पंचम पर पड़ने से उस समय विवाह के योग बन जाते हैं लेकिन यदि उसी समय एकादश स्थान में राहू बैठा हो वह नकारात्मक योग भी बनाता है जिससे बने बनाए रिश्ते भी बिगड़ जाते हैं और बनता हुआ काम अटक जाता है। अक्सर सुनने में आता है कि सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन एन मंजिल के समीप पंहुच कर मामला लटक गया या कहें बात सिरे नहीं चढ़ी। इसका सीधा सा कारण है आपके विवाह के योगकारी ग्रहों पर पाप ग्रहों की दृष्टि। पंचम स्थान पर यदि अशुभ ग्रहों यानि कि शनि, राहू और केतू की दृष्टि पड़ती है तो यह विवाह में बाधक योग बना देती है।

कुंडली में विवाह योग बनाने के उपाय

लेख के उपरोक्त वर्णन में आपने विवाह के कारक ग्रहों की दशा और विवाह में बाधक ग्रहों की दशा के बारे में जाना। ऐसे में जातक के सामने यह सवाल उठ सकता है कि यदि उसकी कुंडली में ग्रहों की दशा अनुकूल नहीं है तो उसे क्या करना चाहिये। इसके लिये जातक कुछ सामान्य उपाय कर सकते हैं। मसलन यदि देवताओं का गुरु ग्रह बृहस्पति की दशा आपकी कुंडली के अनुसार कमजोर चल रही है और आपके विवाह में अड़चने आ रही हैं तो आपको बृहस्पति को प्रसन्न करना चाहिये। इसके लिये हर गुरुवार इनकी पूजा करें और पीले रंग की वस्तुएं इन्हें अर्पित करें। गुरुवार के दिन पीले रंग के परिधान धारण करें तो बहुत अच्छा रहेगा। कमजोर ग्रहों को रत्न पहनने से भी काफी शक्ति मिलती है। बृहस्पति को शक्तिशाली करने के लिये आप पुखराज, जरकन या हीरे की अंगूठी पहन सकते हैं। भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करना भी काफी लाभकारी होता है। अगर और भी बेहतर और त्वरित परिणाम चाहते हैं तो ज्योतिषाचार्य को अपनी जन्म कुंडली दिखाएं और विवाह में बाधक ग्रह या दोष का पता लगाकर उसका निवारण करें।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को एक्टर बना सकते हैं !

पढ़िए कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को एक्टर बना सकते हैं !

आज अभिनय और कला के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए ना जाने कितने युवा संघर्ष कर रहे हैं। एक दौर था जब टीवी और सिनेमा की दुनिया को बहुत अच्छा नहीं समझा जाता था लेकिन वक़्त बदला तो लोगों की सोच में परिवर्तन आया है। जल्द प्रसिद्धी प्राप्त करने के लिए एक्टिंग का क्षेत्र एक बेहतरीन चुनाव बन चुका है। लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि यहाँ सफलता से ज्यादा असफलताओं की कहानियाँ पढ़ी जा सकती हैं। व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की चाल और दशाओं से भी यह देखा जा सकता है कि आपका भविष्य एक्टिंग एवं अभिनय के क्षेत्र में कैसा रहेगा। आइये पढ़ते हैं कि वह कौन से योग होते हैं जिनके आधार पर व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सफल हो सकता है-  

1. कुंडली में अगर किसी का मंगल व शुक्र अच्छी स्थिति में होते हैं तो एक्टिंग और अभिनय के क्षेत्र में सफलता का अच्छा योग बनता है। कुंडली में मंगल और शुक्र सही हों तो व्यक्ति को अभिनय के क्षेत्र में कम प्रयास से ही अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।

2. अभिनय के क्षेत्र का कारक शुक्र ग्रह माना जाता है। अगर कुंडली में शुक्र उच्च का है या कुंडली के दसवें घर पर इसकी दृष्टि पड़ रही है या शुक्र अच्छी स्थिति में होने के कारण दशा में चल रहा है तो इस स्थिति में भी जातक को अभिनय के क्षेत्र में अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।

उदाहरण के तौर पर अगर कुम्भ लग्न की कुंडली में तीसरे घर में मंगल या चौथे घर में शुक्र बैठा है और दोनों की दृष्टि दसवें घर पर पड़ रही है जो कार्यक्षेत्र का घर है तो इस लग्न का जातक अगर अभिनय के लिए प्रयास करता है तो सफल होने की संभावनायें ज्यादा रहती हैं।


3. इन दो योगों के अलावा एक योग और भी बनता है जो एक्टिंग के क्षेत्र से संबंध रखता है। सूर्य और राहू अगर किसी व्यक्ति के अच्छे हैं तो उस व्यक्ति के सफल होने की संभावनायें, अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा रहती हैं। सूर्य को ऊर्जा का कारक माना जाता है और राहू बल का कारक माना जाता है तो यह दोनों ग्रह भी अगर दसवें स्थान को शुभ दृष्टी से देख रहे हैं तो यह भी अभिनय के क्षेत्र में लाभदायक रहता है।

उदाहरण के तौर पर, अगर किसी का सिंह लग्न है और दसमं में शुक्र बैठा है एवं दूसरे स्थान पर सूर्य बैठा है तो इस क्षेत्र के लिए यह एक प्रबल योग बना देता है। क्योकि सिंह लग्न एक राजा के जैसा लग्न माना जाता है और दूसरे घर में सूर्य का बैठना, इसका अर्थ है कि सूर्य दसवें स्थान को देख रहा है। साथ ही साथ अभिनय और कला का कारक शुक्र पहले ही दसमं में बैठा है तो यह व्यक्ति को अभिनय और एक्टिंग के क्षेत्र में बहुत ही जल्द सफलता दिला सकता है।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

कुंडली में प्रेम योग

कुंडली में प्रेम योग

प्रेम हर व्यक्ति की एक स्वाभाविक जरुरत होती है थोड़ा सा अनुकूल वातावरण मिलते ही यह पनपने लगता है। कभी ईशारों में, कभी विचारों में, कभी लंबे साथ में तो कभी पहली मुलाकात में अचानक यूं ही एक झटके में जातक विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। यादों में खोने लगते हैं। घंटों बातें होने लगती हैं फिर रुठना-मनाना चलने लगता है। लेकिन कई बार देखा जाता है कि लाख कोशिश करने के बाद भी जीवन नीरस बना रहता है, प्रेम के लाख बीज बिखेरने पर भी वे अंकुरित नहीं होते, भले ही कितनी सुहानी रुत हो लेकिन बिना प्यार के मन उदास ही रहता है। किसी साथी का सूनापन, किसी के साथ न होने की कमी खलती रहती है। क्या आपने कभी सोचा है कि आपके प्रेम के पौधे को अंकुरित होने और उसे पोषित करने में आपकी कुंडली में ग्रहों की दशा क्या मायने रखती है। जी हां ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आपकी कुंडली में ग्रहों की दशा के अनुसार आपका राशिफल ही नहीं बल्कि जीवन का हर पहलु प्रभावित होता है। ग्रहों की दशा बताती है कि आपके नसीब में प्यार है कि नहीं। आइये जानते हैं कि कुंडली में ऐसे कौनसे कारक होते हैं जो प्रेम योग को दर्शाते हैं।


कब खिलेगा प्यार का फूल
जीवन में प्यार का फूल खिलने के लिये आपके शुक्र ग्रह का अच्छा होना बहुत जरुरी है। शुक्र, चंद्रमा और मंगल ग्रह ही मुख्यत: आपके प्यार को परवान चढ़ाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुक्र को स्त्री ग्रह माना जाता है। पति-पत्नी, प्रेम संबंध, भोग विलास, आनंद आदि का कारक ग्रह भी शुक्र को ही माना जाता है। शुक्र का शुक्र रहे तो जीवन प्रेम से भर जाता है। एस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जब जातक की कुंडली में शुक्र और मंगल का योग बन जाता है या इनका आपस में कोई संबंध होता है तो ऐसी स्थिति में आपके जीवन में प्यार की बहार आ सकती है। इसके अलावा पंचम और सप्तम के स्वामी यदि एक साथ आ जायें तो यह स्थिति भी प्रेम जीवन के लिये सकारात्मक योग बनाती है और आपको अपना प्यार मिलने की संभावना प्रबल होती हैं। यदि शुक्र की दृष्टि पंचम पर पड़ रही हो या भी वह चंद्रमा को देख रहा हो तो ऐसी दशा में प्यार की पिंघें बढ़ सकती है। पंचमेश और एकादशेश का एक साथ बैठना भी आपकी कुंडली में प्रेमयोग को दर्शाता है।

क्यों टूट सकता है दिल
उपरोक्त सभी स्थितियां कुंडली में प्रेमयोग बनाती हैं। लेकिन कुछ स्थितियां ऐसी भी होती हैं जिनमें आपकी अच्छी खासी लव लाइफ तहस-नहस हो जाती है। आप मायूस हो जाते हैं आपको लगता है जैसे आपकी या उसकी गलती की वजह से ऐसा हुआ जबकि ऐसा नहीं है अपने आपको दोष मत दें। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ऐसा पाप ग्रहों की दृष्टि से होता है। जब शुक्र और मंगल एक साथ होते हैं तो ऐसे में प्रेम योग तो बन जाता है लेकिन यदि इन पर शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में प्रेम संबंध टूट सकते हैं बिखर सकते हैं। चंद्रमा में शुक्र की युति भी आपकी कुंडली में प्रेमयोग के लिये अच्छी मानी जाती है लेकिन जब इस पर शनि की दृष्टि पड़ती है तो यही एक विष योग बन जाता है जिससे छोटी-छोटी बातों को लेकर आपस में मनमुटाव होने लगते हैं और ब्रेकअप होने तक की नौबत आ जाती है।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS