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ज्योतिष रोग और उपाय

ज्योतिष रोग और उपाय

हर बीमारी का समबन्ध किसी न किसी ग्रह से है जो आपकी कुंडली में या तो कमजोर है या फिर दुसरे ग्रहों से बुरी तरह प्रभावित है | यहाँ सभी बीमारियों का जिक्र नहीं करूंगा केवल सामान्य रोग जो आजकल बहुत से लोगों को हैं उन्ही का जिक्र संक्षेप में करने की कोशिश करता हूँ | यदि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है तो आज धनवान कोई नहीं है | हर व्यक्ति की कोई न कोई कमजोरी होती है जहाँ आकर व्यक्ति बीमार हो जाता है | हर व्यक्ति के शरीर की संरचना अलग होती है | किसे कब क्या कष्ट होगा यह तो डाक्टर भी नहीं बता सकता परन्तु ज्योतिष इसकी पूर्वसूचना दे देता है कि आप किस रोग से पीड़ित होंगे या क्या व्याधि आपको शीघ्र प्रभावित करेगी |

सूर्य से रोग

सूर्य ग्रहों का राजा है इसलिए यदि सूर्य आपका बलवान है तो बीमारियाँ कुछ भी हों आप कभी परवाह नहीं करेंगे | क्योंकि आपकी आत्मा बलवान होगी | आप शरीर की मामूली व्याधियों की परवाह नहीं करेंगे | परन्तु सूर्य अच्छा नहीं है तो सबसे पहले आपके बाल झड़ेंगे | सर में दर्द अक्सर होगा और आपको पेन किलर का सहारा लेना ही पड़ेगा |

चन्द्र से मानसिक रोग

चन्द्र संवेदनशील लोगों का अधिष्ठाता ग्रह है | यदि चन्द्र दुर्बल हुआ तो मन कमजोर होगा और आप भावुक अधिक होंगे | कठोरता से आप तुरंत प्रभावित हो जायेंगे और सहनशक्ति कम होगी | इसके बाद सर्दी जुकाम और खांसी कफ जैसी व्याधियों से शीग्र प्रभावित हो जायेंगे | सलाह है कि संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में न आयें क्योंकि आपको भी संक्रमित होते देर नहीं लगेगी | चन्द्र अधिक कमजोर होने से नजला से पीड़ित होंगे | चन्द्र की वजह से नर्वस सिस्टम भी प्रभावित होता है |

सुस्त व्यक्ति और मंगल

मंगल रक्त का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु जिनका मंगल कमजोर होता है रक्त की बीमारियों के अतिरिक्त जोश की .कमी होगी | ऐसे व्यक्ति हर काम को धीरे धीरे करेंगे | आपने देखा होगा कुछ लोग हमेशा सुस्त दिखाई देते हैं और हर काम को भी उस ऊर्जा से नहीं कर पाते | अधिक खराब मंगल से चोट चपेट और एक्सीडेंट आदि का खतरा रहता है |

बुध से दमा और अन्य रोग

बुध व्यक्ति को चालाक और धूर्त बनाता है | आज यदि आप चालाक नहीं हैं तो दुसरे लोग आपका हर दिन फायदा उठाएंगे | भोले भाले लोगों का बुध अवश्य कमजोर होता है | अधिक खराब बुध से व्यक्ति को चमड़ी के रोग अधिक होते हैं | साँस की बीमारियाँ बुध के दूषित होने से होती हैं | बेहद खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है | व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण और गूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है |

मोटापा और ब्रहस्पति

गुरु यानी ब्रहस्पति व्यक्ति को बुद्धिमान बनता है परन्तु पढ़े लिखे लोग यदि मूर्खों जैसा व्यवहार करें तो समझ लीजिये कि व्यक्ति का गुरु कुंडली में खराब है | गुरु सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करता है और व्यक्ति जडमति हो जाता है | इसके अतिरिक्त गुरु कमजोर होने से पीलिया या पेट के अन्य रोग होते हैं | गुरु यदि दुष्ट ग्रहों से प्रभावित होकर लग्न को प्रभावित करता है तो मोटापा देता है | अधिकतर लोग जो शरीर से काफी मोटे होते हैं उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति कुछ ऐसी ही होती है |

शुक्र और शुगर

शुक्र मनोरंजन का कारक ग्रह है | शुक्र स्त्री, यौन सुख, वीर्य और हर प्रकार के सुख और सुन्दरता का कारक ग्रह है | यदि शुक्र की स्थिति अशुभ हो तो जातक के जीवन से मनोरंजन को समाप्त कर देता है | नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि का कारण अधिकतर शुक्र ही होता है | मंगल की दृष्टि या प्रभाव निर्बल शुक्र पर हो तो जातक को ब्लड शुगर हो जाती है | इसके अतिरिक्त शुक्र के अशुभ होने से व्यक्ति के शरीर को बेडोल बना देता है | बहुत अधिक पतला शरीर या ठिगना कद शुक्र की अशुभ स्थिति के कारण होता है |

लम्बे रोग और शनि

शनि दर्द या दुःख का प्रतिनिधित्व करता है | जितने प्रकार की शारीरिक व्याधियां हैं उनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को जो दुःख और कष्ट प्राप्त होता है उसका कारण शनि होता है | शनि का प्रभाव दुसरे ग्रहों पर हो तो शनि उसी ग्रह से सम्बन्धित रोग देता है | शनि की दृष्टि सूर्य पर हो तो जातक कुछ भी कर ले सर दर्द कभी पीछा नहीं छोड़ता | चन्द्र पर हो तो जातक को नजला होता है | मंगल पर हो तो रक्त में न्यूनता या ब्लड प्रेशर, बुध पर हो तो नपुंसकता, गुरु पर हो तो मोटापा, शुक्र पर हो तो वीर्य के रोग या प्रजनन क्षमता को कमजोर करता है और राहू पर शनि के प्रभाव से जातक को उच्च और निम्न रक्तचाप दोनों से पीड़ित रखता है | केतु पर शनि के प्रभाव से जातक को गम्भीर रोग होते हैं परन्तु कभी रोग का पता नहीं चलता और एक उम्र निकल जाती है पर बीमारियों से जातक जूझता रहता है | दवाई असर नहीं करती और अधिक विकट स्थिति में लाइलाज रोग शनि ही देता है |

ब्लड प्रेशर और राहू

राहू एक रहस्यमय ग्रह है | इसलिए राहू से जातक को जो रोग होंगे वह भी रहस्यमय ही होते हैं | एक के बाद दूसरी तकलीफ राहू से ही होती है | राहू अशुभ हो तो जातक की दवाई चलती रहती है और डाक्टर के पास आना जाना लगा रहता है | किसी दवाई से रिएक्शन या एलर्जी राहू से ही होती है | यदि डाक्टर पूरी उम्र के लिए दवाई निर्धारित कर दे तो वह राहू के अशुभ प्रभाव से ही होती है | वहम यदि एक बीमारी है तो यह राहू देता है | डर के मारे हार्ट अटैक राहू से ही होता है | अचानक हृदय गति रुक जाना या स्ट्रोक राहू से ही होता है |

प्रेत बाधा और केतु

केतु का संसार अलग है | यह जीवन और मृत्यु से परे है | जातक को यदि केतु से कुछ होना है तो उसका पता देर से चलता है यानी केतु से होने वाली बीमारी का पता चलना मुश्किल हो जाता है | केतु थोडा सा खराब हो तो फोड़े फुंसियाँ देता है और यदि थोडा और खराब हो तो घाव जो देर तक न भरे वह केतु की वजह से ही होता है | केतु मनोविज्ञान से सम्बन्ध रखता है | ओपरी कसर या भूत प्रेत बाधा केतु के कारण ही होती है | असफल इलाज के बाद दुबारा इलाज केतु के कारण होता है }

निष्कर्ष

ज्योतिष और रोग इस सम्बन्ध में गम्भीरता से विचार करके अधिक से अधिक कुंडलियों का अध्ययन करने के पश्चात् एक किताब लिखी जा सकती है | ज्योतिष के जानकारों को इस पर काम करना चाहिए | मैं तो प्रयास कर ही रहा हूँ परन्तु पाठकों से अपेक्षा है कि यदि किसी शारीरिक व्याधि के पीछे आप भी ग्रहों को उत्तरदायी मानते हैं तो अवश्य अपने विचार प्रकट करें |
जय श्री राम

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विवाह का समय और ज्योतिष

हर कोई यह जानना चाहता है कि, उस की शादी कब होगी। ज्योतिष के माध्यम से विवाह का समय निकालने के लिए लोग ज्योतिषी से परामर्श करते हैं ।  विवाह दो लोगों को एक साथ लाता है, जो अपना जीवन एक साथ बिताने का फैसला लेते हैं। ऐसा कहा गया है कि, जोड़ी स्वर्ग में बनती है, इसलिए जब भी विवाह का समय आता है, तब यह एक चिंता का कारण बनता है। हालांकि वैदिक ज्योतिष की मदद से हम इस समय का पता लगा सकते हैं, कि यह समय किसी के जीवन में कब आएगा।
नीचे कुछ कारक हैं, जिस से एक व्यक्ति ज्योतिष की मदद  से विवाह का समय का पता लगा सकता है।
लड़कियों के मामले में 90% ध्यान हम बृहस्पति और उसके प्रभावों को देते हैं, जैसा की यह उनके पति को दर्शाता है। शुक्र का अध्ययन भी करना होता है, क्योंकि यह शादी का कारक है, और यह पुरुषों के शादी को दर्शाता है। शनि ग्रह का भी अध्ययन जरूरी होता है, जो कि शादी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसके अलावा राहु और केतु का भी, जो शादी में देरी ला सकते है। सामान्य नियम के मुताबिक शादी की गणना 7 वें घर  के  मालिक, 7 वें घर में स्थित ग्रहों और निम्नलिखित कारकों को विचार रखकर किया जा सकता है।

 विवाह के समय के लिए कुछ महत्वपूर्ण कंडीशन इस प्रकार हैं-

  1. विवाह 7 वें घर  के  मालिक की दशा अवधि के दौरान या ग्रहों जो 7 वें घर  में स्थित है, के दौरान हो सकता है।
2. शादी की उम्र के दौरान जो के  24 – 28 साल  के करीब ले, महत्व 7 वें घर  के  मालिक और 7 वें घर में स्थित ग्रहों  को दिया जाना चाइये  ।
3. जब 7 वां घर कुछ ग्रह द्वारा  दृष्टिकोण  है, तो उस ग्रह की महादशा वांछित पुरस्कार दे सकता है।
4. जब उस ग्रह की महादशा या अंतर्दशा  हो  जो 7 वें घर को दृष्टि दे रहे हो |
5.   2रे और 4थे घर की अंतर्दशा या महादशा।
6. बृहस्पति गोचर  में 7वें घर, 5वें घर और लग्न को दृष्टि दे रहा हो तो प्रेम विवाह के  चांस अधिक होते है ।
शादी के समय को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में से 7वें घर की राशि है। उदाहरण के तौर पर अगर  राशि बुध के अंतर्गत आता है, तो यह शादी,   22 वें वर्ष से पहले होने की संभावना है।  अगर राशि शनि ग्रह के अंतर्गत आता है, तो यह शादी जन्म के 30 वें वर्ष के बाद भी शादी  हो सकती है।

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जानिए आपकी जन्म कुंडली में विदेश यात्रा योग

जानिए आपकी जन्म कुंडली में विदेश यात्रा योग 

एक समय ऐसा था जब घर से दूर रहकर काम करने को अच्छा नहीं समझा जाता था विदेशों में काम करने या रहने को घर से दूर होने के कारण एक समस्या या दुःख के रूप में देखा जाता था परन्तु वर्तमान समय में विदेश यात्रा या विदेश-वास को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण पूर्णतया बदल गया है आज-कल विदेश-यात्रा और विदेशों में काम करने को एक सुअवसर के रूप में देखा जाता है अधिकांश लोग विदेशों से जुड़कर कार्य करना चाहते हैं तो कुछ विदेश यात्रा को केवल आनंद या एक नये अनुभव के लिए करना चाहते हैं। हममें से अधिकांश की इच्छा होती है कि कम से कम एक बार तो विदेश यात्रा कर ही लें। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जातक जन्मकुंडली में कई योग संयोग देखकर पता लगाया जा सकता है कि उसके जीवन में विदेश यात्रा का अवसर है या नहीं। 
ज्योतिष के अनुसार जन्मकुंडली से अध्ययन से बताया जा सकता है कि किसी जातक की कुंडली में विदेश यात्रा का योग है या नहीं। जन्म कुंडली में बहुत से शुभ-अशुभ योगों के साथ विदेश यात्रा के योग भी मौजूद होते हैं। पंडित विनोद के अनुसार जन्मकुंडली से अध्ययन से बताया जा सकता है कि किसी जातक की कुंडली में विदेश यात्रा का योग है या नहीं। किसी भी कुंडली के अष्टम भाव, नवम, सप्तम, बारहवां भाव विदेश यात्रा से संबंधित होते हैं जिनके आधार पर पता लगाया जा सकता है कि कब विदेश यात्रा का योग बन रहा है।
इसी तरह से जन्मकुंडली के तृतीय भाव से भी जीवन में होने वाली यात्राओं के बारे में बताया जा सकता है। कुंडली में अष्टम भाव समुद्री यात्रा का प्रतीक होता है और सप्तम तथा नवम भाव लंबी विदेश यात्राओं या विदेशों में व्यापार, व्यवसाय एवं दीर्घ प्रवास बताते हैं। जातक यदि विदेश में अपना कोई कार्य करने की योजना बना रहा है तो इस अध्ययन के आधार पर परिणाम का आकलन किया जा सकता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण में देखें तो हमारी कुंडली में बने कुछ विशेष ग्रह-योग ही हमारे जीवन में विदेश से जुड़कर काम करने या विदेश यात्रा का योग बनाते हैं —
“हमारी जन्मकुंडली में बारहवे भाव का सम्बन्ध विदेश और विदेश यात्रा से जोड़ा गया है इसलिए दुःख भाव होने पर भी आज के समय में कुंडली के बारहवे भाव को एक सुअवसर के रूप में देखा जाता है।जन्म कुंडली में सूर्य लग्न में स्थित हो तब व्यक्ति विदेश यात्रा करने की संभावना रखता है। कुंडली में शनि बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं। वहीं कुंडली में बुध आठवें भाव में स्थित हो या कुंडली में बृहस्पति चतुर्थ, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है तब भी विदेश यात्रा के योग होते है। इसी तरह कुंडली में चंद्रमा ग्यारहवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं। वहीं शुक्र जन्म कुंडली के छठे, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो या राहु कुंडली के पहले, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो, तब विदेश जाने का सुख मिलता है।
पारंपरिक भारतीय ज्योतिष के अनुसार तीसरे भाव और बारहवें के अधिपति की दशा या अंतरदशा में जातक छोटी यात्राएं करता है। वहीं नौंवे और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा में लंबी यात्राओं के योग बनते हैं। 
छोटी और लंबी यात्रा का पैमाना सापेक्ष है। छोटी यात्रा कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक की हो सकती है तो लंबी यात्रा कुछ महीनों से सालों तक की। इसी के साथ छोटी यात्रा जन्म या पैतृक निवास से कम दूरी के स्थानों के लिए हो सकती है तो लंबी यात्राएं घर से बहुत अधिक दूरी की यात्राएं भी मानी जा सकती हैं। 
किसी जन्म कुंडली के लग्न विशेष में तीसरे भाव के अधिपति और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा आने पर जातक को घर से बाहर निकलना पड़ता है। जब तक यह दशा रहती है, जातक घर से दूर रहता है। अधिकतर मामलों में दशा बीत जाने के बाद जातक फिर से घर लौट आता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में लग्न और बारहवें भाव के अधिपतियों का अंतर्सबंध होता है वे न केवल घर से दूर जाकर सफल होते हैं, बल्कि परदेस में ही बस भी जाते हैं। 
इसके अलावा लग्नेश और नवमेश दोनो में आपस में राशि परिवर्तन होने पर भी विदेश यात्रा होती है। लग्नेश और चंद्र राशि दोनो ही चर राशियों में स्थित हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है। चन्द्रमाँ को विदेश-यात्रा का नैसर्गिक कारक माना गया है। कुंडली का दशम भाव हमारी आजीविका को दिखाता है तथा शनि आजीविका का नैसर्गिक कारक होता है अतः विदेश-यात्रा के लिये कुंडली का बारहवां भाव, चन्द्रमाँ, दशम भाव और शनि का विशेष महत्व होता है” |||

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कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को बनाते हैं एक सफल उद्यमी

कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को बनाते हैं एक सफल उद्यमी

आज हर व्यक्ति चाहता है कि उसका अपना कोई व्यवसाय हो। बेशक वह छोटा हो किन्तु अपने किसी व्यवसाय की बात ही निराली होती है। कई बार हम बहुत चुनौतियों का सामना करते हुए कोई अपना काम शुरू भी कर देते हैं लेकिन वहां हम सफल होंगे या असफल यह कोई नहीं जानता है। किन्तु व्यक्ति की जन्म कुंडली को देखकर यह बताया जा सकता है कि क्या आप अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हो? या वह उत्तम समय कब आयेगा जब आप अपना कोई काम प्रारंभ कर सकते हैं?
जन्म कुंडली में कर्म (कार्य) का स्थान दसवां घर होता है। अगर किसी व्यक्ति का कर्म स्थान अच्छा है तो  उस व्यक्ति का व्यवसाय अच्छा चलने की संभावना ज्यादा रहती हैं।
आइये एक नजर डालते हैं कुंडली के उन योगों पर जो व्यक्ति के व्यवसाय को सफल बनाने में मदद करते हैं 

  • अगर कुंडली के कर्म स्थान में ब्रहस्पति बैठा हो (जो भाग्य का मालिक होता है) तो यह केंद्रादित्य योग बनता है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह योग होता है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अन्य जातकों की तुलना में अच्छा चलता है।

  • अगर कर्म स्थान पर बुध या सूर्य की दृष्टी हो या इन ग्रहों में से कोई ग्रह कर्म के स्थान (दसवें भाव) में विराजमान हो तो यह लक्ष्मी नारायण योग बनता है। इस प्रकार के जातकों को व्यवसाय में लाभ प्राप्त होने के अवसर ज्यादा प्राप्त होते हैं।


  • जातक की जन्म कुंडली में अगर मंगल उच्च का होकर कर्म भाव में विराजमान है तो ऐसे व्यक्ति को व्यवसाय और विदेश यात्रा के अच्छे संयोग बन जाते हैं।

  • कुंडली के केंद्र में अगर कहीं भी गुरू और सूर्य या चंद्रमा और गुरु की युक्ति (मेल-मिलाप) बन रहा हो तो इस योग का सीधा प्रवाह कर्म को जाता है। शास्त्रों में इसे वर्गोतम योग बोला जाता है। इस योग में व्यक्ति को सभी प्रकार की सुख-सुविधायें प्राप्त होती हैं।


  • सप्तम दृष्टी सभी ग्रहों की होती है। ब्रहस्पति, सूर्य या मंगल इन शुभ ग्रहों में से किसी की भी दृष्टी अगर दसवें घर पर हो तब भी कर्म भाव में अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता रहता है।

  • राहू भी अगर कर्मभाव की तरफ देखता है या कर्म भाव में उच्च का होकर विराजमान हो तो यह भी योग व्यवसाय के लिए अच्छा माना जाता है। बेशक शनि, राहू और केतु अशुभ ग्रह माने जाते हैं किन्तु कई बार योग के कारण यह ग्रह अच्छे फल प्रदान कर देते हैं।

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कुंडली में विवाह योग

कुंडली में विवाह योग

विवाह यानि गृहस्थ जीवन की एक नई शुरुआत। विवाहोपरांत व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति न रहकर परिवार हो जाता है एवं सामाजिक रुप से जिम्मेदार भी। समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। यह जीवन का एक ऐसा मोड़ होता है जिसके अभाव में व्यक्ति अधूरा रहता है। लेकिन विवाह हर व्यक्ति की किस्मत में नहीं होता। अलग-अलग समाजों में विवाह को लेकर अलग-अलग तरह की प्रथाएं और रिवाज हैं। भारतीय समाज में पारंपरिक विवाह बड़े पैमाने पर होते हैं लेकिन वर्तमान समय में प्रेम विवाह का चलन भी बढ़ा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जातक की कुंडली में मौजूद ग्रहों की दशा से व्यक्ति के विवाह को लेकर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। सिर्फ पूर्वानुमान ही नहीं बल्कि यह भी कि व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सफल रहेगा या नहीं यह भी। तो आइये जानते हैं कि ऐसे कौनसे ग्रह हैं जो किसी जातक की कुंडली विवाह के योग को दर्शाते हैं।


कौनसे ग्रह हैं कुंडली में विवाह योग के कारक


कुंडली में विवाह योग के कारक ग्रहों के बारे में एस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि जब बृहस्पति पंचम पर दृष्टि डालता है तो यह जातक की कुंडली में विवाह का एक प्रबल योग बनाता है। बृहस्पति का भाग्य स्थान या फिर लग्न में बैठना और महादशा में बृहस्पति होना भी विवाह का कारक है। यदि वर्ष कुंडली में बृहस्पति पंचमेश होकर एकादश स्थान में बैठता है तब उस साल जातक का विवाह होने की बहुत ज्यादा संभावनाएं बनती हैं। विवाह के कारक ग्रहों में बृहस्पति के साथ शुक्र, चंद्रमा एवं बुद्ध भी योगकारी माने जाते हैं। जब इन ग्रहों की दृष्टि भी पंचम पर पड़ रही हो तो वह समय भी विवाह की परिस्थितियां बनाता है। इतना ही नहीं यदि पंचमेश या सप्तमेश का एक साथ दशाओं में चलना भी विवाह के लिये सहायक होता है।

कौनसे ग्रह हैं कुंडली में विवाह योग के बाधक

बृहस्पति की दृष्टि पंचम पर पड़ने से उस समय विवाह के योग बन जाते हैं लेकिन यदि उसी समय एकादश स्थान में राहू बैठा हो वह नकारात्मक योग भी बनाता है जिससे बने बनाए रिश्ते भी बिगड़ जाते हैं और बनता हुआ काम अटक जाता है। अक्सर सुनने में आता है कि सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन एन मंजिल के समीप पंहुच कर मामला लटक गया या कहें बात सिरे नहीं चढ़ी। इसका सीधा सा कारण है आपके विवाह के योगकारी ग्रहों पर पाप ग्रहों की दृष्टि। पंचम स्थान पर यदि अशुभ ग्रहों यानि कि शनि, राहू और केतू की दृष्टि पड़ती है तो यह विवाह में बाधक योग बना देती है।

कुंडली में विवाह योग बनाने के उपाय

लेख के उपरोक्त वर्णन में आपने विवाह के कारक ग्रहों की दशा और विवाह में बाधक ग्रहों की दशा के बारे में जाना। ऐसे में जातक के सामने यह सवाल उठ सकता है कि यदि उसकी कुंडली में ग्रहों की दशा अनुकूल नहीं है तो उसे क्या करना चाहिये। इसके लिये जातक कुछ सामान्य उपाय कर सकते हैं। मसलन यदि देवताओं का गुरु ग्रह बृहस्पति की दशा आपकी कुंडली के अनुसार कमजोर चल रही है और आपके विवाह में अड़चने आ रही हैं तो आपको बृहस्पति को प्रसन्न करना चाहिये। इसके लिये हर गुरुवार इनकी पूजा करें और पीले रंग की वस्तुएं इन्हें अर्पित करें। गुरुवार के दिन पीले रंग के परिधान धारण करें तो बहुत अच्छा रहेगा। कमजोर ग्रहों को रत्न पहनने से भी काफी शक्ति मिलती है। बृहस्पति को शक्तिशाली करने के लिये आप पुखराज, जरकन या हीरे की अंगूठी पहन सकते हैं। भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करना भी काफी लाभकारी होता है। अगर और भी बेहतर और त्वरित परिणाम चाहते हैं तो ज्योतिषाचार्य को अपनी जन्म कुंडली दिखाएं और विवाह में बाधक ग्रह या दोष का पता लगाकर उसका निवारण करें।

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कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को एक्टर बना सकते हैं !

पढ़िए कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को एक्टर बना सकते हैं !

आज अभिनय और कला के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए ना जाने कितने युवा संघर्ष कर रहे हैं। एक दौर था जब टीवी और सिनेमा की दुनिया को बहुत अच्छा नहीं समझा जाता था लेकिन वक़्त बदला तो लोगों की सोच में परिवर्तन आया है। जल्द प्रसिद्धी प्राप्त करने के लिए एक्टिंग का क्षेत्र एक बेहतरीन चुनाव बन चुका है। लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि यहाँ सफलता से ज्यादा असफलताओं की कहानियाँ पढ़ी जा सकती हैं। व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की चाल और दशाओं से भी यह देखा जा सकता है कि आपका भविष्य एक्टिंग एवं अभिनय के क्षेत्र में कैसा रहेगा। आइये पढ़ते हैं कि वह कौन से योग होते हैं जिनके आधार पर व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सफल हो सकता है-  

1. कुंडली में अगर किसी का मंगल व शुक्र अच्छी स्थिति में होते हैं तो एक्टिंग और अभिनय के क्षेत्र में सफलता का अच्छा योग बनता है। कुंडली में मंगल और शुक्र सही हों तो व्यक्ति को अभिनय के क्षेत्र में कम प्रयास से ही अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।

2. अभिनय के क्षेत्र का कारक शुक्र ग्रह माना जाता है। अगर कुंडली में शुक्र उच्च का है या कुंडली के दसवें घर पर इसकी दृष्टि पड़ रही है या शुक्र अच्छी स्थिति में होने के कारण दशा में चल रहा है तो इस स्थिति में भी जातक को अभिनय के क्षेत्र में अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।

उदाहरण के तौर पर अगर कुम्भ लग्न की कुंडली में तीसरे घर में मंगल या चौथे घर में शुक्र बैठा है और दोनों की दृष्टि दसवें घर पर पड़ रही है जो कार्यक्षेत्र का घर है तो इस लग्न का जातक अगर अभिनय के लिए प्रयास करता है तो सफल होने की संभावनायें ज्यादा रहती हैं।


3. इन दो योगों के अलावा एक योग और भी बनता है जो एक्टिंग के क्षेत्र से संबंध रखता है। सूर्य और राहू अगर किसी व्यक्ति के अच्छे हैं तो उस व्यक्ति के सफल होने की संभावनायें, अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा रहती हैं। सूर्य को ऊर्जा का कारक माना जाता है और राहू बल का कारक माना जाता है तो यह दोनों ग्रह भी अगर दसवें स्थान को शुभ दृष्टी से देख रहे हैं तो यह भी अभिनय के क्षेत्र में लाभदायक रहता है।

उदाहरण के तौर पर, अगर किसी का सिंह लग्न है और दसमं में शुक्र बैठा है एवं दूसरे स्थान पर सूर्य बैठा है तो इस क्षेत्र के लिए यह एक प्रबल योग बना देता है। क्योकि सिंह लग्न एक राजा के जैसा लग्न माना जाता है और दूसरे घर में सूर्य का बैठना, इसका अर्थ है कि सूर्य दसवें स्थान को देख रहा है। साथ ही साथ अभिनय और कला का कारक शुक्र पहले ही दसमं में बैठा है तो यह व्यक्ति को अभिनय और एक्टिंग के क्षेत्र में बहुत ही जल्द सफलता दिला सकता है।

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कुंडली में प्रेम योग

कुंडली में प्रेम योग

प्रेम हर व्यक्ति की एक स्वाभाविक जरुरत होती है थोड़ा सा अनुकूल वातावरण मिलते ही यह पनपने लगता है। कभी ईशारों में, कभी विचारों में, कभी लंबे साथ में तो कभी पहली मुलाकात में अचानक यूं ही एक झटके में जातक विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। यादों में खोने लगते हैं। घंटों बातें होने लगती हैं फिर रुठना-मनाना चलने लगता है। लेकिन कई बार देखा जाता है कि लाख कोशिश करने के बाद भी जीवन नीरस बना रहता है, प्रेम के लाख बीज बिखेरने पर भी वे अंकुरित नहीं होते, भले ही कितनी सुहानी रुत हो लेकिन बिना प्यार के मन उदास ही रहता है। किसी साथी का सूनापन, किसी के साथ न होने की कमी खलती रहती है। क्या आपने कभी सोचा है कि आपके प्रेम के पौधे को अंकुरित होने और उसे पोषित करने में आपकी कुंडली में ग्रहों की दशा क्या मायने रखती है। जी हां ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आपकी कुंडली में ग्रहों की दशा के अनुसार आपका राशिफल ही नहीं बल्कि जीवन का हर पहलु प्रभावित होता है। ग्रहों की दशा बताती है कि आपके नसीब में प्यार है कि नहीं। आइये जानते हैं कि कुंडली में ऐसे कौनसे कारक होते हैं जो प्रेम योग को दर्शाते हैं।


कब खिलेगा प्यार का फूल
जीवन में प्यार का फूल खिलने के लिये आपके शुक्र ग्रह का अच्छा होना बहुत जरुरी है। शुक्र, चंद्रमा और मंगल ग्रह ही मुख्यत: आपके प्यार को परवान चढ़ाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुक्र को स्त्री ग्रह माना जाता है। पति-पत्नी, प्रेम संबंध, भोग विलास, आनंद आदि का कारक ग्रह भी शुक्र को ही माना जाता है। शुक्र का शुक्र रहे तो जीवन प्रेम से भर जाता है। एस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जब जातक की कुंडली में शुक्र और मंगल का योग बन जाता है या इनका आपस में कोई संबंध होता है तो ऐसी स्थिति में आपके जीवन में प्यार की बहार आ सकती है। इसके अलावा पंचम और सप्तम के स्वामी यदि एक साथ आ जायें तो यह स्थिति भी प्रेम जीवन के लिये सकारात्मक योग बनाती है और आपको अपना प्यार मिलने की संभावना प्रबल होती हैं। यदि शुक्र की दृष्टि पंचम पर पड़ रही हो या भी वह चंद्रमा को देख रहा हो तो ऐसी दशा में प्यार की पिंघें बढ़ सकती है। पंचमेश और एकादशेश का एक साथ बैठना भी आपकी कुंडली में प्रेमयोग को दर्शाता है।

क्यों टूट सकता है दिल
उपरोक्त सभी स्थितियां कुंडली में प्रेमयोग बनाती हैं। लेकिन कुछ स्थितियां ऐसी भी होती हैं जिनमें आपकी अच्छी खासी लव लाइफ तहस-नहस हो जाती है। आप मायूस हो जाते हैं आपको लगता है जैसे आपकी या उसकी गलती की वजह से ऐसा हुआ जबकि ऐसा नहीं है अपने आपको दोष मत दें। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ऐसा पाप ग्रहों की दृष्टि से होता है। जब शुक्र और मंगल एक साथ होते हैं तो ऐसे में प्रेम योग तो बन जाता है लेकिन यदि इन पर शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में प्रेम संबंध टूट सकते हैं बिखर सकते हैं। चंद्रमा में शुक्र की युति भी आपकी कुंडली में प्रेमयोग के लिये अच्छी मानी जाती है लेकिन जब इस पर शनि की दृष्टि पड़ती है तो यही एक विष योग बन जाता है जिससे छोटी-छोटी बातों को लेकर आपस में मनमुटाव होने लगते हैं और ब्रेकअप होने तक की नौबत आ जाती है।

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ग्रहों की कौनसी दशाएं बनाती हैं प्रबल संतान योग

कुंडली में संतान योग

जिस तरह विवाह के बिना किसी भी व्यक्ति का जीवन अधूरा माना जाता है उसी प्रकार संतान के बिना भी परिवार को अधूरा ही माना जाता है। बच्चों की किलकारियों से घर के आंगन में जीवन जीवंत हो उठता है। अक्सर देखा जाता है कि विवाह के तुरंत बाद नव दंपति संतान के लिये योजना बनाने लगते हैं। साल भर बाद कुछ के आंगन में नया मेहमान दस्तक दे देता है। अगर विवाह के बाद दंपति चाहे सोच समझकर ही बच्चा पैदा करने में देरी कर रहे हों लेकिन परिजन, मित्रगण, रिश्तेदार हर तरफ से आप पर संतानोत्पत्ति के लिये दबाव बनाया जाता है। बहुत बार ऐसा भी होता है कि आपके लाख चाहने पर भी संतान का योग नहीं मिल रहा होता और बहुत बार आपके न चाहने पर भी आपको यह खुशखबरी मिल जाती है। क्या आप जानते हैं कि आपके साथ ऐसा क्यों है। ऐस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्यों के पास आपके इस सवाल का जवाब है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जातक की जन्मकुंडली में ग्रहों की दशा से यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि जातक की कुंडली में संतान का योग है कि नहीं। तो आइये जानते हैं ऐसे कौनसे योग हैं आपकी कुंडली में जो बताते हैं कि आपको जीवन में संतान का सुख प्राप्त होगा या नहीं।


ग्रहों की कौनसी दशाएं बनाती हैं प्रबल संतान योग


एस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जब पंचम पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान योग बनने की संभावनाएं प्रबल होती हैं। जब जातक की कुंडली में शुक्र अच्छा होता है तो वह गर्भ में शिशु कन्सीव होने के लिये एक शुभ योग बनाता है। अब गर्भ में शिशु स्वस्थ रहे और स्वस्थ ही वह जन्म ले इसके लिये बृहस्पति का शुभ होना मंगलकारी माना जाता है। लग्नेश एवं पंचमेश का संबंध भी संतानोत्पत्ति के लिये अच्छा योग बनाता है। बृहस्पति का लग्न में या भाग्य में या एकादश में बैठना और महादशा में चलना भी संतान उत्पति का प्रबल योग बनाता है। जब शुक्र पंचम को देख रहा हो या वह पंचमेश में हो तो इन परिस्थितियों में संतान पैदा होने की तमाम संभावनाएं जन्म लेती हैं। इस प्रकार यदि कोई जातक संतान को लेकर चिंतित है तो उसे स्वास्थ्य जांच के साथ-साथ अपनी कुंडली का अध्ययन विद्वान ज्योतिषाचार्यों से अवश्य करवाना चाहिये और जानना चाहिये कि कहीं ग्रहों की दशा प्रतिकूल तो नहीं। कहीं संतान उत्पति में देरी का कारण ग्रहों की यह प्रतिकूल दशा तो नहीं।

ग्रहों की कौनसी दशा से होता है संतान उत्पति में विघ्न

ग्रहों के शुभ योग से संतान उत्पति की संभावनाएं तो पैदा होती हैं लेकिन यदि ग्रहों के इस शुभ योग पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी परिस्थितियों में संतान उत्पति में में विलंब हो सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि पंचम स्थान पर राहू की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में संतान को हानि पहुंच सकती है। यहां तक बच्चे के लिये प्राणघातक योग भी बन जाता है अन्यथा बाधा तो पहुंचती ही है। संतान उत्पति का कारक घर पंचम है यदि इस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ती है तो इससे नकारात्मक योग बनता है। इससे संतान होने में बाधा होती है। कभी कभी संतान मृत पैदा होती है या फिर पैदा होने के कुछ समय बाद उसकी मौत हो जाती है तो उसका कारण भी ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यही पाप ग्रह होते हैं।

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कुंडली में सरकारी नौकरी के योग

कुंडली में सरकारी नौकरी के योग

व्यक्ति के जीवन में हो रहीं, छोटी या बड़ी हर प्रकार की घटनाओं के लिए कुंडली के ग्रहों का बहुत बड़ा हाथ होता है। कुंडली में जिस प्रकार का ग्रह शक्तिशाली होता है उसी प्रकार के परिणाम भी व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। कई बार ऐसा होता है कि अथक मेहनत और परिश्रम के बाद भी व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्ति में सफलता नहीं मिल रही होती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरकारी नौकरी का निर्धारण व्यक्ति की योग्यता, शिक्षा, अनुभव के साथ-साथ उसकी जन्मकुंडली में बैठे ग्रह योगों के कारण भी होता है। आइये जानते हैं कि वह कौन-से ग्रह योग होते हैं जो सरकारी नौकरी प्राप्ति में मदद करते हैं।


सरकारी नौकरी के लिए कुंडली में निम्न योगों का होना शुभ माना जाता है-


  • कुंडली में दशम स्थान को (दसवां स्थान) को कार्यक्षेत्र के लिए जाना जाता है। सरकारी नौकरी के योग को देखने के लिए इसी घर का आंकलन किया जाता है। दशम स्थान में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति की दृष्टि पड़ रही होती है तो सरकारी नौकरी का प्रबल योग बन जाता है। कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि जातक की कुंडली में दशम में तो यह ग्रह होते हैं लेकिन फिर भी जातक को संघर्ष करना पड़ रहा होता है तो ऐसे में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति पर किसी पाप ग्रह (अशुभ ग्रह) की दृष्टि पड़ रही होती है तब जातक को सरकारी नौकरी प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अतः यह जरूरी है कि आपके यह ग्रह पाप ग्रहों से बचे हुए रहें।

  • अगर जातक का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष या तुला है तो ऐसे में शनि ग्रह और गुरु(ब्रहस्पति)  का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना, सरकारी नौकरी के लिए अच्छा योग उत्पन्न करते हैं।
     

  • केंद्र में अगर चन्द्रमा, ब्रहस्पति एक साथ होते हैं तो उस स्थिति में भी सरकारी नौकरी के लिए अच्छे योग बन जाते हैं। साथ ही साथ इसी तरह चन्द्रमा और मंगल भी अगर केन्द्रस्थ हैं तो सरकारी नौकरी की संभावनायें बढ़ जाती हैं।
कुंडली में दसवें घर के बलवान होने से तथा इस घर पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने से जातक को अपने करियर क्षेत्र में बड़ी सफलताएं मिलतीं हैं तथा इस घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक को आम तौर पर अपने करियर क्षेत्र में अधिक सफलता नहीं मिल पाती है। 
ज्योतिष के अन्दर इस तरह की समस्या के लिए उपयुक्त उपचार भी मौजूद हैं। जातक की कुंडली का पूरा आंकलन करने के बाद ही उपायों को सुझाया जा सकता है। जो शुभ ग्रह कमजोर हैं उन्हें बलवान बनाकर और अशुभ ग्रहों को शांत कर, इस तरह की समस्याओं का अंत किया जा सकत

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मंगल दोष : कारण और निवारण क्या करें जब कुंडली में हो मंगल दोष



जिस जातक की जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली आदि में मंगल ग्रह, लग्न से लग्न में (प्रथम), चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भावों में से कहीं भी स्थित हो, तो उसे मांगलिक कहते हैं।

  जिस जातक की जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें भाव में कहीं पर भी मंगल स्थित हो उसके साथ शनि, सूर्य, राहु पाप ग्रह बैठे हों तो व पुरुष गोलिया मंगल, स्त्री जातक चुनड़ी मंगल हो जाती है अर्थात द्विगुणी

मांगलिक कुंडली का मिलान : वर, कन्या दोनों की कुंडली ही मांगलिक हों तो विवाह शुभ और दाम्पत्य जीवन आनंदमय रहता है। एक सादी एवं एक कुंडली मांगलिक नहीं होना चाहिए।

मंगल-दोष निवारण : मांगलिक कुंडली के सामने मंगल वाले स्थान को छोड़कर दूसरे स्थानों में पाप ग्रह हों तो दोष भंग हो जाता है। उसे फिर मंगली दोष रहित माना जाता है तथा केंद्र में चंद्रमा 1, 4, 7, 10वें भाव

शास्त्रकारों का मत ही इसका निर्णय करता है कि जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें। भी मांगलिक एवं अमांगलिक पत्रिका हो, दोनों परिवार पूर्ण संतुष्ट हों अपने पारिवारिक संबंध के कारण तो भी यह.संबंध श्रेष्ठ नहीं है, ऐसा नहीं करना चाहिए।

ऐसे में अन्य कई कुयोग हैं। जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखें। यदि ऐसी स्थिति हो तो 'पीपल' विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करें।  

मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करें। देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्या‍दि में ही इसे प्रयोग करें। छोटे कार्य के लिए नहीं।

विशेष : विशेषकर जो मांगलिक हैं उन्हें इसकी पूजा अवश्य करना चाहिए। चाहे मांगलिक दोष भंग आपकी
कुंडली में क्यों न हो गया हो फिर भी मंगल यंत्र मांगलिकों को सर्वत्र जय, सुख, विजय और आनंद देता है।...
मांगलिक-दोष दूर करते हैं मंगल के 21 नाम। निम्न 21 नामों से मंगल की पूजा करें।
1. ऊँ मंगलाय नम:
2. ऊँ भूमि पुत्राय नम:
3. ऊँ ऋण हर्वे नम:
4. ऊँ धनदाय नम:
5. ऊँ सिद्ध मंगलाय नम:
6. ऊँ महाकाय नम:
7. ऊँ सर्वकर्म विरोधकाय नम:
8. ऊँ लोहिताय नम:
9. ऊँ लोहितगाय नम:
10. ऊँ सुहागानां कृपा कराय नम:
11. ऊँ धरात्मजाय नम:
12. ऊँ कुजाय नम:
13. ऊँ रक्ताय नम:
14. ऊँ भूमि पुत्राय नम:
15. ऊँ भूमिदाय नम:...
16. ऊँ अंगारकाय नम:
17. ऊँ यमाय नम:
18. ऊँ सर्वरोग्य प्रहारिण नम:
19. ऊँ सृष्टिकर्त्रे नम:
20. ऊँ प्रहर्त्रे नम:
21. ऊँ सर्वकाम फलदाय नम:  
विशेष: किसी ज्योतिषी से चर्चा करके ही पूजन करना चाहिए। मंगल की पूजा का विशेष महत्व होता है। अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की गई पूजा प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है।

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आंखों की गतिविधियों से भी जान सकते हैं ‘मांगलिक दोष है या नहीं’

ज्योतिष विधा के अनुसार मंगल ग्रह विनाशकारी माना गया है। यह जिस भी जातक की कुंडली में प्रवेश करता है, उसे नष्ट करके रख देता है। उसके जीवन में उथल-उथल मच जाती है, कोई भी कार्य सफल नहीं होता, तमाम कोशिशों के बाद भी वह असफल ही रहता है।

ज्योतिष विशेषज्ञों के अनुसार जन्म कुंडली में मंगल ग्रह के नीच अवस्था में होने से जातक को रक्त संबंधित बीमारियां सबसे पहले जकड़ लेती हैं। इसके अलावा वह जिस घर में वास करता है वहां बिजली के उपकरण जल्दी-जल्दी खराब होने लगते हैं। तो यदि आपकी कुंडली में भी मंगल दोष है तो आगे बताए जा रहे हैं कुछ उपाय।  रोज़ाना करें, जल्द ही आपको फर्क महसूस होगा...

मंगल दोष से पीड़ित जातक को छोटे भाई बहनों का ख्याल रखना चाहिए। धर्म शास्त्रों के अनुसार मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर ले कर उसका टीका माथे पर लगाने से हनुमान मंगल दोष को नष्ट कर देते हैं।



आप रोज़ाना या विशेष तौर पर मंगलवार के दिन बंदरों को गुड़ और चने खिलाएं। इसके अलावा अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए। समय-समय पर पौधे को पानी देना ना भूलें...

लेकिन क्या आप जानते हैं कि मंगल दोष से प्रभावी व्यक्ति को भूलकर भी ऐसी गतिविधियां नहीं करनी चाहिए जो उसके मंगल दोष को और भी बढ़ाए। उदाहरण के लिए यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल पीड़ित है तो उन्हें क्रोध नहीं करना चाहिए। जितना हो सके अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें।

आप कोई भी फैसला जल्दबाजी में ना लें, अन्यथा भारी नुकसान हो सकता है। खासतौर पर पैसों से जुड़ा फैसला सोच समझकर ही लें...

तो यदि आप मंगल दोष से पीड़ित हैं तो इन कार्यों को करने से बचें, लेकिन आप यदि जानते ही नहीं कि आप पर मंगल दोष है या नहीं तो हम आपको कुछ आसान टिप्स बताने जा रहे हैं। इसके लिए आपकी जन्म कुंडली देखने की भी आवश्यकता  नहीं है...

यदि सोते समय आपकी आंखे थोड़ी थोड़ी खुली रहती है या आपका मुंह सोते वक्त खुला रहता है। सामने की तरफ सीधा देखने पर भी आंख का हीरा या कॉर्निया थोड़ा उपर की तरफ हो या आंख के हीरे या कॉर्निया की नीचे की सफेदी दिखती हो तो इसका मतलब आप मांगलीक है।

यह बातें काफी दिलचस्प हैं, लेकिन यह जाने-माने ज्योतिषीय शोध का नतीजा ही है। यदि आपके साथ भी यही नतीजा सामने आता है तो तुरंत अपनी जन्म कुंडली का अध्ययन करवाकर जान लें... 
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कुंडली में कालसर्प दोष

अक्सर व्यक्ति कालसर्प दोष का नाम सुनते ही घबरा जाता है। कुंडली में कालसर्प दोष का पाया जाना कोई बहुत बड़ी घटना नहीं मानी जाती है। देखा जाता है कि 70 प्रतिशत लोगों की कुंडली में यह दोष होता है। आपको जानकार हैरानी होगी कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जी की कुंडली में भी यह दोष था और तो और क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर की कुंडली भी कालसर्प दोष से प्रभावित थी लेकिन फिर भी दोनों व्यक्ति अपने-अपने क्षेत्रों में नाम और मान-सम्मान प्राप्त करने में सफल रहे।

कालसर्प दोष कुंडली में खराब जरूर माना जाता है किन्तु विधिवत तरह से यदि इसका उपाय किया जाए तो यही कालसर्प दोष सिद्ध योग भी बन सकता है। आइये तो जानते हैं कि क्या होता है यह कालसर्प दोष और किस प्रकार से यह व्यक्ति को प्रभावित करता है- 

जब किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु  और केतू ग्रहों के बीच अन्य सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प दोष का निर्माण होता है। क्योकि कुंडली के एक घर में राहु  और दूसरे घर में केतु के बैठे होने से अन्य सभी ग्रहों से आ रहे फल रूक जाते हैं। इन दोनों ग्रहों के बीच में सभी ग्रह फँस जाते हैं और यह जातक के लिए एक समस्या बन जाती है। इस दोष के कारण फिर काम में बाधा, नौकरी में रूकावट, शादी में देरी और धन संबंधित परेशानियाँ, उत्पन्न होने लगती हैं।


कालसर्प दोष के प्रकार
प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में 12 प्रकार के कालसर्प योगों का वर्णन किया गया है-
1-अनन्त  2-कुलिक  3-वासुकि  4-शंखपाल  5-पद्म  6-महापद्म  7-तक्षक  8-कर्कोटिक 9-शंखचूड़  10-घातक  11- विषाक्तर  12-शेषनाग।


अनंत कालसर्प योग
अगर राहु  लग्न में बैठा है और केतु सप्तम में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तो कुंडली में अनंत कालसर्प दोष का निर्माण हो जाता है। अनंत कालसर्प योग के कारण जातक को जीवन भर मानसिक शांति नहीं मिलती। इस प्रकार के जातक का वैवाहिक जीवन भी परेशानियों से भरा रहता है।

कुलिक कालसर्प योग
अगर राहु कुंडली के दुसरे घर में, केतु अष्ठम में विराजमान है और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में है तब कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति के जीवन में धन और स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ उत्पन्न होती रहती हैं।

वासुकि कालसर्प योग
जन्मकुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु विराजमान हो तथा बाकि ग्रह बीच में तो वासुकि कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस प्रकार की कुंडली में बल और पराक्रम को लेकर समस्या उत्पन्न होती हैं।

शंखपाल कालसर्प योग
अगर राहु  चौथे घर में और केतु दसवें घर में हो साथ ही साथ बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे व्यक्ति के पास प्रॉपर्टी, धन और मान-सम्मान संबंधित परेशानियाँ बनी रहती हैं।

पद्म कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के पांचवें भाव में राहु, ग्याहरहवें भाव में केतु और बीच में अन्य ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे इंसान को शादी और धन संबंधित दिक्कतें परेशान करती हैं।

महा पद्म कालसर्प योग
अगर राहु किसी के छठे घर में और केतु बारहवें घर में विराजमान हो तथा बाकी ग्रह मध्य में तो तब महा पद्म कालसर्प योग का जन्म होता है। इस प्रकार के जातक के पास विदेश यात्रा और धन संबंधित सुख नहीं प्राप्त हो पाता है। 

तक्षक कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के सातवें भाव में राहु और केतु लग्न में हो तो इनसे तक्षक कालसर्प योग बनता है। यह योग शादी में विलंब व वैवाहिक सुख में बाधा उत्पन्न करता है।

कर्कोटक कालसर्प योग
अगर राहु आठवें घर में और केतु दुसरे घर आ जाता है और बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो कर्कोटक कालसर्प योग कुंडली में बन जाता है। ऐसी कुंडली वाले इंसान का धन स्थिर नहीं रहता है और गलत कार्यों में धन खर्च होता है।

शंखनाद कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य हों तो इनसे बनने वाले योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते है। यह दोष भाग्य में रूकावट, पराक्रम में रूकावट और बल को कम कर देता है।

पातक कालसर्प योग
इस स्थिति के लिए राहु दसंम में हो, केतु चौथे घर में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तब पातक कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  काम में बाधा व सुख में भी कमी करने वाला बन जाता है।

विषाक्तर कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के ग्याहरहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को विषाक्तर कालसर्प योग कहते है। इस प्रकार की कुंडली में शादी, विद्या और वैवाहिक जीवन में परेशानियां बन जाती हैं।

शेषनाग कालसर्प योग
अगर राहु बारहवें घर में, केतु छठे में और बाकी ग्रह इनके बीच में हो तो शेषनाग कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  स्वास्थ्य संबंधित दिक्कतें, और कोर्ट कचहरी जैसी समस्याएं उत्पन्न करता है।
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धन पाने के लिये दूध से करें ये ज्योतिषीय उपाय

यदि आपकी घर में धन नहीं ठहरता या हानि होती रहती है तो अपनी कुंडली के अनुसार आप ज्योतिषीय उपाय जान सकते हैं  ज्योतिषाचार्यों से। 

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धन पाने के लिये दूध से करें ये ज्योतिषीय उपाय
दूध स्वास्थ्य के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण आहार है, प्रोटीन से लेकर हमारी सेहत के लिये जरूरी विभिन्न तत्व दूध में होते हैं। दूध हमारी सेहत बनाने के लिये तो कारगर है ही लेकिन क्या आप जानते हैं दूध से धन प्राप्ति भी हो सकती है। नहीं नहीं दूध बेचकर पैसा कमाने की बात नहीं कर रहा उस तरीके से धन कमाने में मेहनत थोड़ी ज्यादा करनी पड़ती है। तो यहां हम आपको कुछ ऐसे ज्योतिषीय उपाय बता रहे हैं जिनके प्रताप से धन प्राप्ति की आपकी कामना पूर्ण हो सकती है।
देवी-देवताओं की पूजा में खासकर भगवान भोलेनाथ की, आपने दूध का इस्तेमाल होते देखा होगा। यदि आप शिवशंकर के उपासक हैं तो आपने जरूर शिवलिंग को दूध से नहालाया भी होगा। दरअसल ज्योतिष के विद्वान दूध को चंद्रमा का कारक मानते हैं। इसलिये ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिये विद्वान ब्राह्मण भी आपको शिवलिंग पर दूध अर्पित करने की सलाह देते होंगे। यदि आप राहू से पीड़ित हैं तो आपको सांप को दूध पिलाने का सूझाव भी अवश्य मिला होगा।
असल में इसके पिछे यही मान्यता काम करती है कि दूध सभी को प्रिय होता है जिसे चढ़ाने पर सभी देवता, ग्रह आदि प्रसन्न होते हैं और आप पर से उनका अशुभ प्रभाव कम हो जाता है और शुभ परिणाम मिलने लगते हैं।
कैसे करें उपाय
रात को सोने से पहले तो आप दूध पीते ही होंगे वह आपको अच्छी नींद देने के लिये अच्छा है यानि सेहत दुरूस्त करता है साथ ही यदि आप धन पाने के इच्छुक हैं तो एक गिलास दूध अपने बिस्तर के पास रखें मगर इतने पास भी नहीं कि नींद में आपका हाथ लगे दूध बिस्तर पर गिर जाये या फिर रात को आप उठें और गिलास आपके पैरों से टकराजाये और दूध फर्श पर दूध का गिरना बहुत अशुभ माना जाता है इसलिये सुरक्षित तरीके से गिलास को अपने बिस्तर के नजदीक टेबल आदि पर रख सकते हैं। अब करना आपको ये है कि सुबह उठकर नहा धौकर स्वच्छ हों व इस दूध के गिलास को ले जाकर बबूल के पेड़ की जड़ में डाल दें। बबूल का पेड़ कहां मिलेगा यह आपको ही खोजना पड़ेगा हालांकि इतना दुर्लभ पेड़ नहीं है आम तौर पर मिल जाता है। और हां यह उपाय आपको सिर्फ सोमवार को करना है यानि दूध रविवार की रात को रखें ताकि सोमवार सुबह आप उसे बबूल के पेड़ की जड़ में डाल सकें। उम्मीद है इससे आपके बिगड़े काम बनने और धन प्राप्ति की पूरी संभावना है।
यह दूसरा उपाय भी आपको सोमवार को करना है। स्नानादि के पश्चात स्वच्छ होकर कच्चे दूध का प्रबंध करें व शिवालय में जाकर शिवलिंग पर इस दूध को अर्पित करें। यदि आप लगातार सात सोमवार इस उपाय को करें तो आपके सारे कष्टों का अंत होने की प्रबल संभावानाएं हैं। दरअसल मान्यता है कि इससे न सिर्फ भगवान शिव की कृपा मिलती है बल्कि समस्त ग्रहों के अशुभ प्रभाव भी दूर जाते हैं।
अभी जो उपाय आपको बता रहे हैं उससे आपके घर में मां लक्ष्मी की कृपा स्थाई रूप से बनी रहेगी। आपको करना सिर्फ इतना है कि एक लोहे के बर्तन में स्वच्छ ताजा जल लेकर इसमें चीनी, दूध एवं घी को मिश्रित करें व पीपल के वृक्ष की छाया में खड़े होकर इस मिश्रण को जड़ में अर्पित करें। इससे आप पर मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहेगी।

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धन के लिये घर लगायें क्रासुला का पौधा

धन के लिये घर लगायें क्रासुला का पौधा

भारतीय वास्तु शास्त्र हो या चीनी वास्तु शास्त्र फेंगशुई, घर में सुख शांति व समृद्धि लाने के अनेक उपाय बताये गये हैं। सुख-शांति व समृद्धि के लिये धन एक बहुत ही जरूरी तत्व है। इसलिये धन पाने के भी कई तरीके वास्तु में मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है धन प्राप्ति के लिये लगाये जाने वाले पौधे। धन के पौधे के नाम मशहूर मनी प्लांट के बारे में तो आप जानते ही होंगे अगर सही दिशा में इसे लगाया जाये तो यह काफी लाभकारी होता है लेकिन गलत दिशा में लगाने से नुक्सान भी उठाना पड़ता है। लेकिन हम अपने इस लेख में आपको मनी प्लांट के बारे में नहीं बल्कि ऐसे ही एक अन्य पौधे की जानकारी दे रहे हैं जिसे अपने घर में लगाकर आप धन प्राप्ति की कामना कर सकते हैं।
दरअसल फेंगशुई एक चीनी वास्तु शास्त्र है जो कि सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा के सिद्धांत पर काम करता है। फेंगशुई वास्तु में जितने भी उपाय बताये जाते हैं वे घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर घर के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा को प्रवाहित करते हैं।

फेंगशुई के अनुसार धन देता है क्रासुला का पौधा

क्रासुला, यह बहुत ही मुलायम मखमली लगने वाला फैलावदार पौधा होता है जिसकी चौड़ी पत्तियां होती हैं। इसकी पत्तियों का रंग हरे और पीले रंग का मिश्रण जैसा होता है क्योंकि यह न तो सही से हरा होता है और न ही अच्छे से पीला बल्कि दोनों के मिले-जुले रंग सी पत्तियां होती हैं इसकी।
क्रासुला का यह पौधा दिखने में सुंदर, छूने में मखमली लगता है, लेकिन दिखने में यह जितना मखमली होता है इसकी पत्तियां उतनी ही मजबूत भी होती हैं। दरअसल ये रबड़ जैसी होती हैं जिन्हें छूने या हाथ लगाने से टूटने या मुड़ने का खतरा नहीं रहता। वहीं आपको इसकी ज्यादा देखभाल करने की भी जरूरत नहीं होती हफ्ते में दो या तीन बार भी आप इसे पानी दे देते हैं तो यह सूखता नहीं है। साथ ही इसके लिये कोई लंबी-चौड़ी जगह की भी आवश्यकता नहीं होती, एक छोटे से गमले में इसे लगाया जा सकता है। छांव में भी अपने आपको यह पौधा पाल लेता है।

घर में कहां पर लगायें क्रासुला का पौधा

फेंगशुई के अनुसार क्रासुला का पौधा घर का प्रवेश द्वार जहां से खुलता है उसके दाहिनी ओर रखना चाहिये।
फेंगशुई वास्तु शास्त्र में क्रासुला के पौधे को सकारात्मक ऊर्जा का बहुत ही अच्छा स्त्रोत माना गया है। मान्यता है कि घर में इस पौधे को रख लिया जाये तो यह पौधा घर में धन वृद्धि करता है। धन को घर की ओर खींचने लगता है। यानि यदि आपके घर में धन नहीं ठहरता है तो भी आप फेंगशुई के इस उपाय को अपना सकते हैं।

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दान सबसे बड़ा धर्म

दान सबसे बड़ा धर्म       

हिन्दू धर्म के अनुसार दान धर्म से बड़ा ना तो कोई पूण्य है ना ही कोई धर्म। दान, भीख. जो भी बदले में कुछ भी पाने की आशा के बिना किसी ब्राह्मण, भिखारी, जरूरतमंद, गरीब लोगों को दिया जाता है उसे दान कहा जाता है. “दान-धर्मत परो धर्मो भत्नम नेहा विद्धते”।


दान के प्रकार
सात्विक दान – किसी भी देश में जिस समय पर जिन चीज़ो की कमी हैं उसे बिना किसी भी उम्मीद के जरूरतमंद लोगों को देना ही सात्विक दान है।


पद्म पुराण में, विष्णु फलक से कहते हैं - "दान के लिए तीन समय होते हैं - नित्या (दैनिक) किया गया दान, नैमित्तिक दान कुछ प्रयोजन के लिए किया गया दान, और काम्या दान किसा इच्छा के पूरी होने के लिए किया गया दान। इसके अलावा चौथी बार दान प्रायिक दान होता है जो मृत्यु से संबंधित है।“


(1) नित्य दान – जो प्राणी नित्य सुबह उठ कर अपने नित्या कर्म में देवता के ही एक स्वरूप उगते सूरज को जल भी अर्पित कर दे उसे ढेर सारा पुण्य मिलता है। उस समय जो स्नान करता है , देवता और पितर की पूजा करता है, अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, पानी, फल, फूल, कपड़े, पान, आभूषण, सोने का दान करता है, उसके फल असीम है। जो भी दोपहर में भोजन कि वस्तु दान करता है, वह भी बहुत से पुण्य इकट्ठा कर लेता है। इसलिए एक दिन के तीनों समय कुछ दान ज़रूर करना चाहिए। कोई भी दिन दान से मुक्त नही होना चाहिए। अगर कोई भी एक पखवाड़े या एक महीने के लिए कुछ भी भोजन दान नहीं करता है, तो मैं भी उसे उतने ही समय के लिए भूखा रखता हूँ। मैं उसे एक ऐसी बीमारी में डाल देता हूँ जिसमें कि वह कुछ भी आनंद नहीं ले सकते है। जो कुछ भी नहीं दान नही कर पाता है, उसे कई व्रत रखने चाहिए।

 (2) नैमित्तिक दान - नैमित्तिक दान के लिए कुछ विशेष  नैमित्तिक अवसर और समय होते हैं। अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी, संक्रांति, माघ, अषाढ़, वैशाख और कार्तिक पूर्णिमा, सोमवती अमावस्या, युग तिथि, गजच्छाया, अश्विन कृष्ण त्रयोदशी ; व्यतीपात और वैध्रिती नामक योग ,पिता की मृत्यु तिथि आदि को नैमित्तिक समय दान के लिए कहा जाता है। जो भी देवता के नाम से कुछ भी दान करता है उसे सारे सुख मिलते हैं।

(3) काम्या दान - जब एक दान व्रत और देवता के नाम पर कुछ इच्छा की पूर्ति के लिए किया जाता है, उसे दान के लिए काम्या समय कहा जाता है ।
अभ्युदायिक दान क्या है - अभ्युदायिक दान का समय सभी शुभ अवसरों, शादी के समय, एक नवजात शिशु के मंदिर में अभिषेक संस्कार के समय, अच्छी तरह से अपनी क्षमता के अनुसार दान किया जाता है उसे दान के लिए अभ्युदायिक समय कहा जाता है। इस दान को करने वाला सभी प्रकार की सिद्धि को प्राप्त करता है।मनुष्य को मरते समय शरीर को नश्वर जानकर दान करना चाहिए। इस दान से यम लोक रास्ते में आप सभी प्रकार की आराम को प्राप्त करते हैं।

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ऑनलाइन टैरो रीडिंग - TAROT READING IN HINDI with famous tarot reader param queen Joytish guru Aditya shrama

ऑनलाइन टैरो-रीडिंग
ऑनलाइन टैरो...यहाँ आप अपने द्वारा चुने हुए टैरो कार्ड्स के आधार पर अपने जीवन के सभी क्षेत्रों जैसे प्यार, कैरियर, सेहत, धन, कार्यों, यात्रा, व्यवसाय, संबंधों आदि के विषय में जान सकते हैं।



टैरो ( Tarot in Hindi ) से की गई भविष्यवाणी और इसके द्वारा किया गया मार्गदर्शन काफी आसान और निश्चित होता है। टैरो कार्ड विद्या अन्य ज्योतिष शास्त्र की तरह ही है और उनके समकक्ष भी है। यह एक व्यक्ति के चरित्र और उसके व्यक्तित्व को समझने में काफी उपयोगी साबित होती है। कार्ड्स और उसपर अंकित चिन्ह से व्यक्ति के जीवन घटना क्रमों को समझने में मदद मिलती है।
मेष राशि 21 मार्च से 20 अप्रैल- एम्परर, किंग ऑफ़ वांड्स, वृषभ राशि 21 अप्रैल से 20 मई- हैरोफ़न्ट, किंग ऑफ़ पेंटाक्लेस, मिथुन राशि 21 मई से 20 जून- लवर्स, नाइट ऑफ़ स्वोर्ड्स, कर्क राशि 21 जून से 20 जुलाई- चेरियट, मून, क्वीन आफ कप्स, सिंह राशि 21 जुलाई से अगस्त 21- स्ट्रेंथ, सन, क्वीन ऑफ़ वांड्स, कन्या राशि 22 अगस्त से 22 सितम्बर- हर्मिट, नाइट ऑफ़ पेंटाक्लेस, तुला राशि 23 सितम्बर से 22 अक्टूबर- जस्टिस, द एम्प्रेस, क्वीन ऑफ़ स्वोर्ड्स, वृश्चिक राशि 23 अक्टूबर से 22 नवम्बर- डेथ, किंग ऑफ़ कप्स, धनु राशि 23 नवंबर से 20 दिसंबर- टेम्पेरन्स, नाइट ऑफ़ वांड्स, मकर राशि 21 दिसम्बर से 19 जनवरी- डेविल, क्वीन ऑफ़ पेंटाक्लेस, कुंभ राशि 20 जनवरी से 19 फरवरी- स्टार, किंग ऑफ़ स्वोर्ड्स, मीन राशि 20 फ़रवरी से 20 मार्च- हाई प्रीस्टेस , हंगेड मेन , नाइट ऑफ़ कप्स।
आइये देखते हैं कुछ माइनर अरकाना टैरो कार्डस के अर्थ, जो आपसे सम्बन्ध रखते हैं। हर राशि का अपना एक चिन्ह होता है और यह कार्ड चिन्ह, अपने गुण-अवगुणों से आपको प्रभावित करते हैं।

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